डिजाइन और परिवेश

जिंदगी रुकती नहीं है। यह प्रत्येक चरण में कर्म तथा अनुभव का मिला जुला स्वरुप है जिसके बिना यह अपनी गतिशील प्रकृति को खो देती है। अधिकांश कर्मों की उत्पत्ति अंतर्मन से होती है-तथा कभी यह प्रेरणा के रुप में तथा कभी आत्म-अवलोकन के रुप में होती है।

लेकिन अनुभव का संबंध उस परिवेश से भी होता है जहां कोई व्यक्ति रहता है। परिवेश का अर्थ केवल आस पास का माहौल ही नहीं है अपितु इसमें वातावरण, स्थिति तथा माहौल भी अंतर्निहित होते हैं। एक सहज शारीरिक व्यवस्था के साथ एक आरामदायक सामाजिक ताना बाना किसी भी व्यक्ति के स्वास्थ्य तथा मनोवृत्ति के लिए आश्चर्यजनक बदलाव ला सकती है और ऐसा विशेष रुप से उस समय अधिक होता है जब वृद्धावस्था में अनेक चिंताए होती हैं। इसलिए, एक संभाव्य, कार्यशील तथा विश्वसनीय भौतिक परिवेश बहुत अधिक महत्व रखता है।

वर्तमान समय में प्रत्येक संरचना का निर्माण एक सामान्य, स्वस्थ तथा सक्रिय व्यक्ति को ध्यान में रख कर किया जाता है। सहजता से इस सच्चाई को भुला दिया जाता है कि प्रत्येक व्यक्ति की आयु समय के साथ बढ़ती है।

तथा आयु के साथ साथ शरीर में इस प्रकार के परिवर्तन होते हैं जिनके कारण जन सुविधा स्थलों का प्रयोग करने में उन्हें कठिनाईयां हो सकती हैं। इसलिए, प्रत्येक भवन तथा सार्वजनिक स्थल के ढ़ाचें की रुपरेखा का डिजाइन बनाते समय और उनके निर्माण के समय उनकी पंहुच, उपयोगिता तथा सुरक्षा पर मुख्य रुप से ध्यान दिया जाना चाहिए। इन घटकों के अलावा, ढ़ांचों का अभिमुखन तथा कार्यशीलता आदि बिन्दुओं पर भी विचार अवश्य किया जाना चाहिए।

तथा यह सभी कार्य केवल तभी किए जा सकते हैं जब अभिकल्पना अथवा विचार की उत्पत्ति के समय ही वृद्धों के प्रति जागरुकता पैदा की जाए। एक भौतिक परिवेश जिसे उत्पन्न होने वाली संभावित कठिनाईयों के प्रति संवेदनशील रहते हुए डिजाइन किया गया है, उससे वृद्धों के स्वास्थ्य पर सुनिश्चित रुप से सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। उनके अकेलेपन की भावनाएं संभवत स्वतंत्रता में परिवर्तित हो सकेंगी, जिसके परिणामस्वरुप उनके स्वास्थ्य को पोषण प्राप्त होगा तथा उन्हें संतुष्टि तथा आंतरिक संतोष की प्राप्ति हो सकेगी। हालांकि, ऐसा कहना करने से बहुत अधिक सरल है।

www.oldagesolutions.org पर हमने ऐसे लक्षणों की सूची संकलित की है जिन्हे एक अवसंरचना परिवेश के डिजाइन तैयार करते समय ध्यान में रखा जाना चाहिए ताकि इसे वरिष्ठ व्यक्तियों के लिए अधिक सुसंगत तथा उनके लिए सुविधाजनक बनाया जा सके। यह लक्षण, जिन्हें कमोबेश सिद्धान्त के रुप में अपनाया जाना चाहिए, निम्नलिखित हैं-

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  • प्रत्येक अवसंरचना के प्रवेश तथा निकासी तक पहुंचना न केवल सरल होना चाहिए बल्कि यह सड़क से स्पष्ट रुप से दिखाई भी देने चाहिए। रैम्प, सीढ़ियों तथा एलेवेटर्स की व्यवस्था से सुविधा या आराम में वृद्धि होती है।

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  • आदर्श रुप में, 1:12 की ढ़लान तथा 6 मीटर लम्बाई और 120 से.मी. चौड़ाई के रैम्प उपलब्ध कराए जाने चाहिए तथा वृद्ध तथा निशक्त व्यक्तियों द्वारा वॉकर्स को ले जाने अथवा उन्हे व्हीलचेयर पर ले जाने में सहायता के लिए हैडरेल लगाए जानी चाहिए।

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  • विस्तृत और पक्के रास्ते तथा गलियारे वृद्धों के लिए बहुत अधिक उपयोगी साबित होते हैं तथा ऐसे वृद्ध व्यक्ति जिन्हे दमा अथवा अन्य श्वसन संबंधी रोग होते हैं, उनके लिए तो यह बहुत ही उपयोगी साबित होते हैं।

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  • भवनों का विन्यास बहुत अधिक अनुकूल होना चाहिए। उचित प्रकाश व्यवस्था, संवातन, उचित शौचालयों की व्यवस्था तथा साफ सुथरा माहौल, एक ऐसे परिवेश को तैयार करेगा जो कि स्वास्थ्यप्रद, साफ सुथरा तथा सुरक्षित होगा।

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  • ध्वनि को अवशोषित करने वाली सामग्रियों जैसे पर्दों, मैट्रेसिस, कालीनों, कपड़ों से युक्त फर्नीचर आदि, बेलबूटेदार परदे आदि से एक उचित ध्वनि संबंधी परिवेश तैयार होता है।

एकमात्र सुखद और सुरक्षित परिवेश से ही वयोवृद्ध व्यक्तियों को आत्म तुष्टि तथा आराम के साथ शांति, समरसता, प्रशान्ति तथा सुविधा प्राप्त हो सकेगी जिनका वह पिछले कई वर्षों से अभाव महसूस करते आ रहे हैं।

वृद्धों के जीवन का क्या स्वरुप होगा, इसके निर्धारण में एक बेहतर परिवेश वस्तुत एक सुदृढ़ भूमिका का निर्वाह कर सकता है।