मूत्र असंयतता अथवा मूत्र को रोके रखने में असमर्थता वयोवृद्ध व्यक्तियों विशेषकर महिलाओं में एक आम समस्या होती है। 60 वर्ष से उपर की उम्र की कुल महिलाओं में एक तिहाई महिलाएं तथा कुल पुरुषों में 10 प्रतिशत पुरुष मूत्र असंयतता से पीड़ित होते हैं। असंयतता का स्तर हलकी असुविधा से लेकर गम्भीर अशक्तता होता है तथा

असंयत मूत्र रोग से पीड़ित रोगी तथा उसका देखभालकर्ता को अकसर उपलब्ध उपचार विकल्पों की जानकारी नहीं होती है तथा रोगी अकारण ही पीड़ा उठाते रहते हैं। वस्तुत, अधिकांश मामलों में असंयतता को प्रभावी रुप से नियंत्रित किया जा सकता है।

आयु बढ़ने के साथ साथ असंयतता का आना परिहार्य नहीं होता है बल्कि यह तो किसी विशिष्ट रोग अथवा औषधि के कारण होता है। अकसर असंयतता का संबंध कमजोरी, भ्रम, अथवा अस्पताल में भर्ती होने से होता है अथवा यह मूत्र संबंधी संक्रमण का लक्षण हो सकता है। जीर्ण असंयतता इनमें से किसी एक अथवा अनेक प्रकार का हो सकता है :

hand
दबाव असंयतता अथवा व्यायाम, खांसी, छींकने, हंसने अथवा अन्य शारीरिक गतिविधियों जिनसे मूत्राशय पर जोर पड़ता है के दौरान मूत्र रिसाव हो जाता है। यह सभी आयु समूह की अधिकांश महिलाओँ में होता है।
hand
संवर्धित प्रोस्टेट अथवा दीर्घकाल से चले आर रहे मधुमेह के कारण ओवरफ्लो असंयतता अथवा निरन्तर भरे हुए मूत्राशय से कुछ मात्रा में मूत्र रिसाव होता है।
hand
उत्तेजक असंयतता अथवा इतनी देर तक मूत्र को रोकने की असमर्थता की शौचालय तक पहुंचा जा सके, के पीछे मस्तिष्काघात, मनोभ्रंश तथा पार्किन्सन्स रोग के कारण होता है। कुछ वयोवृद्ध व्यक्तियों को संन्धिशोथ के कारण शौचालय में पहुंचने तक देर लग सकती है तथा सामान्य मूत्र नियंत्रण के साथ ही उन्हे असंयतता की समस्या हो सकती है। ऐसा सामान्य रुप से वृद्ध व्यक्तियों के साथ भी हो सकता है।

निदान और उपचार

असंयतता के प्रबन्धन में सबसे महत्वपूर्ण कदम रोग के कारण के निर्धारण में विस्तृत नैदानिक मूल्यांकन है। अधिकांश रोगियों को मूत्र रोग विशेषज्ञ (जो कि मूत्रनली रोगों में विशेषज्ञता रखता है) अथवा स्त्री रोग विशेषज्ञा को दिखाने की आवश्यकता पड़ती है।

मूत्र असंयतता का उपचार निदान पर निर्भर करता है। ऑक्सीबुटिनिन (ट्रोपान) जैसे औषधि के साथ उपचार प्रभावी होता है लेकिन उसके साथ दुष्प्रभाव जुड़े होते हैं जैसे मूंह का सूखना, ग्लूकोमा तथा मूत्र धारिता आदि।

असंयत मूत्र रोग यदि संवर्धित प्रोस्टेट के कारण होता है तो इस मामलें में शल्यचिकित्सा से इसमें सुधार अथवा इसका उचित इलाज किया जा सकता है।

व्यायाम से श्रोणि क्षेत्र की कोशिकाओँ को सुदृढ़ किया जा सकता है तथा मूत्राशय आउटलेट को नियंत्रित किया जा सकता है।

मूत्र नियंत्रण में “मूत्राशय पुनर्प्रशिक्षण” संबंधी व्यावहार प्रबन्धन तकनीक सहायक साबित होती हैं। इन विधियों से मूत्राशय के भरने और व्यक्ति के शौचालय तक पहुंचने तक उत्सर्जन को रोकने की अनुभूति में सुधार होता है।

कभी कभी असंयत मूत्र रोग का उपचार कैथेटर (लोचपूर्ण रबड़ नलिका) को मूत्रमार्ग में लगाकर भी किया जाता है जिसमें मूत्र को एक नियमित समय पर उत्सर्जित किया जाता है अथवा इसे मूत्राशय में स्थाई रुप से रखा जाता है। लेकिन लम्बे समय तक कैथेटर को लगाए रखने से हमेशा ही मूत्र संबंधी संक्रमण हो जाता है।

ऐसे रोगी जिन्हे उपरोक्त उल्लिखित विधियों से सहायता नहीं पहुंचाई जा सकती है उनके लिए विशेष रुप से तैयार किए गए अवशोषक अधोवस्त्र भी उपयोगी साबित होते हैं। लेकिन, यह बहुत अधिक मंहगे पड़ते हैं।