किसी भवन या सुविधा का निर्माण करते समय उसका डिजाइन एक सामान्य, स्वस्थ तथा सक्रिय मनुष्य को ध्यान में रखते हुए बनाया जाता है। वास्तुकार तथा साथ ही अंतिम उपयोगकर्ताओं को सामान्य रुप से इस बात का अहसास नहीं होता है कि आज नहीं तो कल हमें भी वृद्ध होना है। हाल ही में हमारे समाज में चिकित्सा तकनीक के क्षेत्र में असीम प्रगति हुई है। इसके परिणामस्वरुप विश्व में विशाल जनसांख्यिकी परिवर्तन हो रहे हैं। शीघ्र ही इस धरा पर वयोवृद्ध हो रहे व्यक्तियों का एक विशाल जनसमूह विकसित हो जाएगा जिन्हें विभिन्न सामाजिक कारणों से अपनी सहायता स्वयं करनी होगी। तथा उनके लिए निर्मित परिवेश बाधाओं से युक्त होगा। बाधाएं, वृद्धों पर प्रतिकूल प्रभाव ड़ालती हैं। उनके कारण वृद्धों को शारीरिक गतिविधियां करने में अवरोध पैदा होता है तथा उन्हें अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए आश्रित होना पड़ता है। उनके लिए बाधा रहित निर्मित परिवेश के सृजन पर तत्काल ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है। वयोवृद्ध व्यक्तियों को परिवेश में बाधाओं के कारण उनकी सम्पूर्ण भागीदारी तथा आनन्द से वंचित नहीं किया जाना चाहिए।

बाधा रहित वास्तुशिल्प के अंतर्गत वयोवृद्ध व्यक्तियों के लिए कार्यात्मक, सुरक्षित तथा सुविधाजनक निर्मित परिवेश का सृजन करने के लिए कतिपय डिजाइन सिद्धान्तों का उपयोग तथा समावेशन शामिल किया जाएगा। योजना बनाने के दौरान जिन सिद्धान्तों को अपनाए जाने की आवश्यकता है

अभिगम्यता

समस्त निर्मित परिवेश का डिजाइन इस प्रकार से तैयार किया जाना चाहिए कि युवा, वृद्ध तथा अशक्त सभी व्यक्तियों के लिए यह अभिगम्य हों।

पहुंच

निर्मित परिवेश में इस प्रकार की व्यवस्थाएं तैयार की जानी चाहिए जिससे यह युवा, वृद्ध तथा अशक्त सभी व्यक्तियों के लिए पहुंच पाना संभव हो।

उपयोगिता

समस्त निर्मित परिवेश का डिजाइन इस प्रकार का होना चाहिए कि वह सभी के लिए उपयोगी हो।

अभिमुखन

समस्त निर्मित परिवेश का डिजाइन इस प्रकार से तैयार किया जाना चाहिए कि सभी इसमें सरलता से प्रवेश कर सकें और अपने रास्ते का पता लगा सकें। भवन से सभी की सरलता से निकासी भी बहुत अधिक महत्व रखती है, विशेषकर अचानक घटित होने वाली आपदातों तथा विपत्तियों के समय।

व्यावहारिकता

डिजाइन में उन सभी सिद्धान्तों को शामिल किया जाना चाहिए जिससे वयोवृद्ध व्यक्तियों के लिए यह व्यावहारिक हो तथा वह अपना कार्य स्वयं कर सकें।

सुरक्षा

समस्त निर्मित परिवेश को सुरक्षा की दृष्टि से डिजाइन करने से प्रत्येक व्यक्ति जीवन तथा स्वास्थ्य को न्यूनतम जोखिम के साथ इधर-उधर आना जाना कर सकेगा।

क्या वयोवृद्ध व्यक्ति उपेक्षित अथवा आत्मनिर्भर महसूस करते हैं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि निर्मित परिवेश को तैयार करते समय डिजाइन के संबंध में संवेदनशीलता बरती गई थी अथवा नहीं। इसलिए आंतरिक निर्मित परिवेश के साथ साथ बाहरी सार्वजनिक स्थलों में ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है। इन दोनों के बीच में डिज़ाइन उद्देश्य से एक ऐसे समर्थकारी भौतिक परिवेश के साथ ऐसी सेवाएं विकसित होंगी जिससे वयोवृद्ध व्यक्ति अपने परिवार तथा समुदाय के भीतर अधिक समय आत्म निर्भर हो सकेगें तथा उन्हें संस्थागत देखभाल की कम आवश्यकता होगी। इस प्रकार से बाधा रहित निर्मित परिवेश एक आयु एकीकृत समाज तथा सभी आयु वर्ग से निर्मित समाज के समर्थन के लिए व्यक्तिगत परिवेश पुख्ता होगा।

हम में से प्रत्येक व्यक्ति आज नहीं तो कल वृद्ध होगा तथा अनेक कारक आयु बढ़ने की प्रक्रिया को प्रभावित करते हैं। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं :

प्राथमिक कारक

आनुवांशिक तथा अन्तर्निहित जैविक कारण, जन्म के समय अर्जित दोष, आनुवांशिक अथवा पारिवारिक दोष जैसे कि मधुमेह से हड्डियां,सामर्थ्य, नजर आदि प्रभावित होती है|

द्वितीयक कारक

संचयी प्रभाव जो कि प्रदूषित पर्यावरण तथा कार्य के खतरनाक स्थलों से उत्पन्न होते हैं जैसे श्वसन, श्रवण तथा शरीर का पोस्चर आदि।

शरीर क्रिया संबंधी कारक

सामर्थ्य, सचलता में कमी, प्रतिरक्षा में गिरावट, वयोवृद्ध व्यक्तियों में चयापचय प्रणाली के धीमा होने से उनके दैनिक क्रिया कलाप प्रभावित हो सकते है। असयंत मूत्रण एक प्रमुख रुग्णता है जिसका समाधान किए जाने की आवश्यकता है।

मनोवैज्ञानिक कारक

वित्तीय संसाधनों की कमी, सेवा निवृत्ति के उपरांत काम गंवा बैठना, पति या पत्नी या मित्र की मृत्यु हो जाने से वयोवृद्ध व्यक्तियों में तनाव का स्तर बहुत अधिक बढ़ सकता है।

बाधा रहित परिवेश के लिए डिजाइन सिद्धान्त

प्रवेश और निकास:

प्रत्येक भवन के प्रवेश तथा निकास मार्ग सुलभ होने चाहिए तथा सड़क से वह स्पष्ट रुप से दिखाई देने चाहिए। यदि प्रवेश लॉबी सड़क के स्तर से ऊंची है, तो रैम्प उपलब्ध बनाए जाने चाहिए। एक मंजिल से अधिक वाले भवनों में सुविधाजनक सीढ़ियों के अलावा रैम्प और लिफ्ट आदि की व्यवस्था अवश्य की जानी चाहिए।

रैम्प:

वाकर्स तथा व्हील चेयर्स का प्रयोग करने वाले वयोवृद्ध व्यक्तियों को भवन में प्रवेश तथा निकास करने में रैम्पस् से सुविधा रहती है। इसलिए इस प्रकार के रैम्प की ढ़ाल 1:12 से कम नहीं होनी चाहिए। न्यूनतम चौड़ाई 120 से.मी तथा अधिकतम लम्बाई 6 मीटर होनी चाहिए तथा उसके बाद लगभग 180 से.मी. की उतराई उपलब्ध कराई जानी चाहिए। रैम्प पर हैंडरेल्स तथा दोनो ओर 10 से.मी. उंचे सिरे होने चाहिए।

दरवाजे:

सभी दरवाजे कम से कम 80 से.मी. चौड़े होने चाहिए ताकि उसमें से एक व्हील चेयर तथा वॉकर आसानी से निकल सके। 150 से.मी. x 150 से.मी. का न्यूनतम स्पष्ट स्तर स्थान दरवाजों से पूर्व तथा दरवाजे के बाद अवश्य उपलब्ध कराया जाना चाहिए। दरवाजे तथा खिड़कियां इस प्रकार की सामग्री से बनी होनी चाहिए जो कि उनको प्रचालित करने में सहायक हों। दरवाजों को खोलने अथवा उनको लॉक करने के लिए कलाई अथवा अंगुलियों को घुमाने फिराने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए। लीवर टाइप के हैंडल अधिक बेहतर रहते हैं।

सीढ़ियां:

भवनों में ऐसी सीढ़ियां जिन पर 150 से.मी. के राइजर्स तथा 300 से.मी. के ट्रीड्स सीढ़ियों से उतरने तथा उन पर चढ़ने के लिए वयोवृद्ध व्यक्तियों के लिए आरामदायक रहते हैं। सीढ़ियों के दोनो और रेलिंग्स से उनको सहायता मिलती है। मोड़ों पर त्रिकोणीय ट्रीड्स से बचा जाना चाहिए क्योंकि वह खतरनाक हो सकते हैं। खुले राईजर्स तथा बाहर निकले हुए सिरे से वृद्ध व्यक्तियों के गिरने की संभावना रहती है क्योंकि उनके पैर तथा छड़ी आदि उन में अड़ सकती हैं। झुके हुए राइजर्स अधिक बेहतर होते हैं। ट्रीड्स अधिमानत फिसलन रहित सतह वाले होने चाहिए अथवा कम से कम उनके किनारों पर फिसलन रहित पट्टियां लगी होनी चाहिए ताकि फिसलने से बचा जा सके। ट्रीड्स और राईजर्स के रंग भिन्न भिन्न होने चाहिए ताकि कमजोर नजर वाले वयोवृद्ध व्यक्ति भी इसमेंसरलता से अंतर कर सकें।

रास्ते :

सार्वजनिक रास्तों में, वॉकवेस के सिरे नीचे होने चाहिए। यह रास्ते सीधे तथा सपाट होने चाहिए तथा यह इतने चौड़े होने चाहिए कि उन पर से व्हील चेयर ले जाई जा सके। अंतरालों पर यह चौड़े होने चाहिए ताकि दूसरी व्हील चेयर वहां से गुजर सके। वयोवृद्ध व्यक्ति सरलता से इधर उधर आ जा सकें, भवन के रास्तों तथा कारिडोरों तथा उद्यानों आदि में रास्तों पर रेलिंग्स लगाया जाना लाभदायक होता है। फर्श तथा पक्के रास्तों के किनारों पर भिन्न भिन्न रंगों का प्रयोग किया जाना चाहिए ताकि कमजोर नजर वाले वयोवृद्ध व्यक्तियों को भी सुगमता रहे।

भवनों का विन्यास:

भवनों में प्रकाश तथा हवा का उचित प्रबन्ध होना चाहिए। किसी भी भवन का विन्यास सरल तथा सीधा होना चाहिए ताकि वयोवृद्ध व्यक्ति आसानी से अपना रास्ता पहचान सकें क्योंकि अधिकांश वयोवृद्ध व्यक्तियों की याददाश्त कमजोर हो जाती है। एक साथ झुण्ड़ में बने हुए कमरों तथा उद्यानों, गलत तरीके से रखे गुए गलीचों तथा पायदानों, तथा गलत जगह पर बने हुए उद्यानों तथा स्ट्रीट फर्नीचर, आने जाने के सुगम रास्तों पर संकेत पट्टियों से वयोवृद्ध व्यक्तियों के टकराने की संभावना बनी रहती है तथा जिससे उन्हें चोट आदि लग सकती है। निजी तथा सार्वजनिक क्षेत्रों में शौचालय आदि सुगम स्थानों पर बने हुए होने चाहिए क्योंकि अधिक वयोवृद्ध व्यक्ति असंयत मूत्रता आदि से पीड़ित होते हैं।

शौचालय:

भवन में कम से कम एक शौचालय पर्याप्तबड़ा होना चाहिए जिसमें व्हील चेयर अथवा वाकर के उपयोगकर्ता प्रवेश कर सकें, दरवाजा बन्द कर सकें तथा वह पानी की समीप वाली सीट पर बैठ सकें। व्हील चेयर के आने जाने के लिए 150 से.मी न्यूनतम स्थान के साथ साथ 2.25 वर्ग मीटर का टर्निंग स्पेस अवश्य उपलब्ध कराया जाना चाहिए। वाटर क्लोसेट्स, मूत्रालयों, वाश बेसिन तथा शावर के आस पास यदि ग्रैब बार्स (अधिमानता स्टील की) लगाई जाती हैं तो इससे वयोवृद्ध व्यक्ति अपनी दिन प्रति दिन की गतिविधियां सरलता से कर पाने में समर्थ होते हैं। शौचालयों में सभी उपयोगी साजो सामान तक व्हील चेयर पर बैठे व्यक्ति की सरलता से पहुंच होनी चाहिए। शौचालयों और रसोई घरों के फर्श आदि न फिसलने वाली टाइलों से बने होने चाहिए। स्नानघर में रबड़युक्त मैट्स से फिसलने के कारण गिरने को न्यूनतम किया जा सकता है।

प्रकाश व्यवस्था :

Eप्रत्येक भवन में पर्याप्त प्राकृतिक प्रकाश होना चाहिए। खिड़कियों पर भली भांति रुप से शेड्स लगे होने चाहिए ताकि दिन के समय में सूर्य की रोशनी से उत्पन्न होने वाली चौंध से सुरक्षा मिल सके। अंधेरे तथा रोशनी वालों स्थानों में रात के समय में कन्ट्रास्ट न्यूनतम होना चाहिए। ऐसा इसलिए क्योंकि ऐसे वयोवृद्ध व्यक्ति जिनकी नजर कमजोर होती है उन्हें अपनी आंखों को भली भांति रोशनी वाले स्थानों से अंधेरे तथा इसके विपरीत स्थिति में अपनी आंखों को समायोजित करने में कठिनाई होती है। बिजली के स्विच बोर्डों के लिए भिन्न भिन्न रंगों का प्रयोग करने से वयोवृद्ध व्यक्तियों को उनमें अंतर करने में सहायता मिलती

सफाई और सुरक्षा:

वयोवृद्ध व्यक्तियों में प्रतिरक्षण का स्तर कम होता है, तथा यदि दीवारें सीधीं होंगी तो उन पर कम धूल जमेगी जिससे उनको संक्रमित होने का कम जोखिम होगा। यदि दीवारों, दरवाओं, खिड़कियों तथा फर्नीचर के किनारे गोल हैं तो वयोवृद्ध व्यक्तियों को चोट आदि लगने की संभावना कम होती है।

ध्वनि या शोर:

अधिकांश वयोवृद्ध व्यक्तियों को कम सुनाई देता है। कमरों में ध्वनि का अवशोषण करने वाली सामग्रियों जैसे पर्दों, कार्पेट, कपड़े का साजो सामान जैसे गद्दियां और परदे आदि, दीवारों पर लगाए जाने वाला सजावटी साजो सामान आदि के प्रयोग से प्रतिध्वनि उत्पन्न होने को काफी हद तक रोका जा सकता है जिससे वृद्ध व्यक्ति सरलता से सुन सकते हैं।

सौन्दर्यपरक परिवेश :

बाधारहित परिवेश के लिए सभी व्यवस्थाएं करने के बावजूद, यह बहुत अधिक महत्वपूर्ण है कि सौन्दर्यपरक रुप से मनभावन, साफ सुथरा तथा भली भांति सुसज्जित परिवेश होना चाहिए जिससे वृद्ध व्यक्तियों में अवसाद को रोकने में आश्चर्यजनक सफलता मिलती है।

सारांश:

इस बात को समझना अति महत्वपूर्ण है कि डिजाईनिंग तथा बाधा रहित निर्मित परिवेश के लिए अधिक स्थान अनिवार्य नहीं हो जाता है और न ही निर्माण की लागत में अनिवार्य रुप से वृद्धि होती है। यदि किसी भी डिजाइन में बाधा रहित वास्तुशिल्प का समावेश किया जाता है तो इससे सभी को लाभ मिलेगा क्योंकि हम सभी ने आज नहीं तो कल वृद्धावस्था तक पहुंचना ही है।

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