जैसे जैसे हमारी आयु बढ़ती है, हमारी दृष्टि में निरन्तर गिरावट होती रहती है तथा 60 वर्ष से उपर के लगभग प्रत्येक व्यक्ति द्वारा चश्में का प्रयोग किया जाता है। कुछ ऐसे रोग भी होते हैं जिनसे वृद्धावस्था में दृष्टि प्रभावित होती है। आंखों की निरन्तर जांच, उचित चश्में, शल्य चिकित्सा, औषधियों तथा दृष्टि संबंधी विशेष सहायक उपकरणों से अधिसंख्य लोग अपनी उचित दृष्टि बनाए रखने में सफल होते हैं तथा एक सम्पूर्ण और स्वतंत्र जीवन जीते हैं।

नजर की नियमित जांच

नजर की जांच केवल चश्मे के लिए की जाने वाली जांच नहीं होती है बल्कि यह व्यक्ति की आंख की जांच होती है। यदि किसी व्यक्ति को आंख का नया रोग विकसित होता है तो उसकी जांच समय रहते की जा सकती है। इसलिए यह बहुत महत्वपूर्ण बात है कि नियमित रुप से अपनी आंखों की जांच कराई जाए।यह सिफारिश का जाती है कि हर व्यक्ति को प्रत्येक दो वर्ष के अंतर पर अपनी दृष्टि की जांच करवानी चाहिए और यदि किसी व्यक्ति को नजर में कोई परिवर्तन नजर आता है तो आंखों की जांच बारबार करवानी चाहिए। आंखों की जांच एक विशेष जांच होती है तथा इसको नेत्र विशेषज्ञ द्वारा किया जाता है। यदि किसी व्यक्ति की आंख की जांच में कोई असामान्य बात नजर आती है तो उसके लिए आगे और जांच तथा उपचार की आवश्यकता पड़ती है, अपने पारिवारिक डाक्टर से सलाह करना महत्वपूर्ण होता है।

चश्मे और कम दृष्टि संबंधी सहायक उपकरण

इस बात की हमेशा सलाह दी जाती है कि अपनी नजर के नम्बर के अनुसार ही चश्मा बनवाना चाहिए जो आपकी आवश्यकता के अनुरुप हो। आजकल प्रयोग के लिए तैयार पढ़ने के चश्में भी उपलब्ध हैं। हालांकि इस बात की संभावना नहीं है कि उनके किसी की आंख को क्षति पहुंचेगी लेकिन उनसे आंखों पर दबाव तथा सिरदर्द हो सकता है। अपने चश्में को साफ करना मत भूलिए। कभी भी अपने चश्में को इस प्रकार न रखें जिससे लैंस सतह के साथ स्पर्श करता रहे जिससे उस पर खरोंचें आदि पड़ सकती हैं। खरोंच युक्त चश्में से आंखों में चौंधियाहट पैदा हो सकती है तथा उससे साफ भी कम दिखाई देता है।

मैग्नीफायर से चीजें बड़ी दिखाई देती हैं ताकि उससे ऐसे कार्य किए जा सकें जिनको करने में अन्यथा दिक्कत होती है क्योंकि उस व्यक्ति विशेष की नजर कमजोर हो चुकी है। पर्याप्त रोशनी

60वर्ष की आयु में आंखों को 20 वर्ष की आयु में अपेक्षित रोशनी की तुलना में तीन गुणा अधिक रोशनी चाहिए होती है। आपके घर में प्राकृतिक रोशनी के अबाधित रुप से आने की व्यवस्था होनी चाहिए। आपके इस बात को भी सुनिश्चित करना चाहिए की आपके घर में पर्याप्त विद्युत व्यवस्था होनी चाहिए, विशेष रुप से सीढ़ियों की शुरुआत तथा अंत में तो ऐसी व्यवस्था अवश्य होनी चाहिए। पढ़ने और पास की नजर से संबंधित कार्य करते समय, यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि पुस्तक अथवा कार्य के पीछे से सीधी रोशनी आनी चाहिए। फ्लूरोसेन्ट लैम्प विशेष रुप से बेहतर रहते हैं क्योंकि वह बहुत अधिक रोशनी पैदा करते हैं लेकिन उनसे ताप कम पैदा होता है।

नजर के और अधिक कमजोर होने के कारण

आंखों की कुछ ऐसी स्थितियां होती हैं जिनसे वयोवृद्ध व्यक्तियों में नजर और अधिक कमजोर होती चली जाती है जिससे उनको चश्में के साथ देखने में भी दिक्कत होती है। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं :

मोतियाबिन्द

यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें व्यक्ति की आंख का लैंस जो कि सामान्यत पारदर्शी होता है, वह अपारदर्शी हो जाता है। इसके कारण नजर धीरे धीरे दर्दरहित रुप में कमजोर हो जाती है। प्रारम्भ मे तो इस समस्या को चश्मे से दूर किया जा सकता है लेकिन इसके लिए प्रत्येक व्यक्ति को शल्य चिकित्सा की आवश्यकता होती है। मोतियाबिन्द के आप्रेशन में अपारदर्शी लैंस को हटाया जाता है। नजर को प्लास्टिक के इंट्रा-ओक्यूलर (आंख के अंदर) लैंस लगाकर ठीक किया जाता है अथवा चश्मा प्रदान किया जाता है।

मधुमेह रेटिनोपैथी

मधुमेह से दृष्टिपटल में परिवर्तन होने शुरु हो जाते हैं जिनसे नजर में विकृति पैदा हो जाती है। आमतौर पर ऐसे बदलाव अपरिवर्तनीय होते हैं। आजकल, यदि ऐसी स्थिति का प्रारम्भिक अवस्था में ही पता चल जाता है तो लेज़र द्वारा उपचार से और अधिक नजर खराब होने से रोका जा सकता है। रक्त शर्करा पर कड़ा नियंत्रण रखने के अलावा यह अनिवार्य है कि मधुमेह के प्रत्येक रोगी द्वारा हर वर्ष अर्हता प्राप्त नेत्र विशेषज्ञ द्वारा अपनी आंखों की विस्तृत जांच कराई जाए।

ग्लूकोमा

ग्लूकोमा अपरिवर्तनीय रुप से नजर कमजोर होने का एक अन्य कारण है जिसमें आंख के अंदर का दबाव बढ़ जाता है। प्रारम्भिक अवस्था में ही रोग का पता चलना तथा समय पर उपचार बहुत ही महत्वपूर्ण है। ऐसे सभी व्यक्ति जिनके परिवार में ग्लूकोमा का इतिहास रहा है और जो 40 वर्ष से उपर की आयु हैं, उनकी नियमित रुप से ग्लूकोमा की जांच की जानी चाहिए।

आयु संबंधित मैकुलर विकृतियां

दृष्टिपटल पर मैकूला विज़न का केन्द्र होता है। मैकुला की आयु संबंधित विकृतियों से नजर उत्तरोत्तर कमजोर होती चली जाती है तथा कभी कभी यह बहुत ही तीव्र तथा गम्भीर होती है। कुछ मामलों में लेज़र द्वारा इलाज की आवश्यकता होती है तथा इससे कुछ सहायता मिलती है। दूसरे व्यक्तियों में चश्मा, निम्न दृष्टि सहायक उपकरण, एक स्वस्थ आहार जिसमें फल और सब्जियां शामिल हों, सीधे सूरज की किरणों में आने से बचना तथा विटामिन और मिनरल का सेवन करना लाभदायक साबित होता है।

इनमें से कुछ रोग इलाज से ठीक हो जाते हैं।यदि उपचार निष्प्रभावी अथवा उपलब्ध नहीं है, व्यक्ति द्वारा अपनी शेष बची नजर का उपयोग किया जा सके, इसके लिए काफी अधिक सहायता की जा सकती है। केवल कुछ प्रतिशत लोग ही ऐसे होते हैं जो कि बिलकुल नहीं देख पाते हैं, यहां तक की ऐसे लोग जो कि पंजीकृत नेत्रहीन हैं उनमें भी देख सकने की कुछ क्षमता बाकी होती है। दृष्टिदोष से पीड़ित व्यक्ति भी किस प्रकार से सुरक्षित रुप से घर में तथा घर से बाहर इधर उधर आना जाना किया जाए सीख जाते हैं ताकि वह खरीददारी आदि का काम कर सके, खाना आदि पका सके तथा अपने घर को चला सके और उसके साथ खाली समय में की जाने वाली गतिविधियों और सामाजिक कार्यकलापों में हिस्सा ले सकें। यदि किसी व्यक्ति की आंख कमजोर हो गई है तो उसे अपने घर में रोशनी को अधिकतम करना चाहिए और ऐसी स्थिति में निम्न दृष्टि सहायक उपस्कर विशेषरुप से लाभदायक हो सकते हैं।