आयु के साथ साथ मस्तिष्कीय अवसंरचना और कार्यों में अनेक परिवर्तन होते हैं। इनमें मस्तिष्कीय कोशिकाओं का क्षय, मस्तिष्क से प्रेरणा का कम पारेषण तथा मस्तिष्कीय कोशिकाओं के मेटाबोलिज्म के अंतिम उत्पादों का स्थिति परिवर्तन शामिल है। इन परिवर्तनों के बावजूद सामान्य वृद्ध व्यक्ति का मस्तिष्क शिक्षण और याद करने के लिए काफी समर्थता रखता है। तथापि,कुछ व्यक्तियों में आयु संबंधी यह परिवर्तन अधिक होते हैं और उनमें महत्वपूर्ण कार्यात्मक असमर्थता पैदा हो जाती है जिसे संज्ञानात्मक असमर्थता कहा जाता है।

संज्ञानात्मक असमर्थता

वृद्धावस्था को प्राप्त कर चुके मस्तिष्क के नैदानिक लक्षणों में संज्ञान अथवा व्यवहार में सूक्ष्म अथवा स्पष्ट परिवर्तन होते हैं। वृद्ध व्यक्तियों में किसी हद तक भूलना एक सामान्य बात है जिसे “आयु संबंधित स्मृति विकृति” कहा जाता है।

आयु संबंधित स्मृति विकृति अक्सर 50 वर्ष की आयु के बाद प्रकट होती है तथा इसके साथ धीमी गति से स्मृति दुष्क्रिया आरम्भ होती है जिसे उचित परीक्षणों से प्रमाणित किया जा सकता है। तथापि,बौद्धिक कार्य आमतौर पर अक्षुण्ण बने रहते हैं तथा किसी प्रकार की तंत्रिका संबंधी कमी परिलक्षित नहीं होती है। इसकी तुलना में,मनोभ्रंश संज्ञानात्मक असमर्थता का गम्भीर तथा विकृतिविज्ञानात्मक स्वरुप होता है। यह नैदानिक सिन्ड्रोम है तथा इसके अंतर्गत बहु संज्ञान क्षमताओं की निरन्तर असमर्थता परिलक्षित होती है, जो कि व्यवहार संबंधी अनेक समस्याओं से सम्बद्ध होता है।

अनेक विकृतिविज्ञानात्मक स्थितियों के कारण मनोभ्रंश की स्थिति उत्पन्न होती है जिसमें अल्जीमर रोग,लेवी बॉडी डिमेन्शिया, पार्किन्सन्स रोग तथा संवहन मनोभ्रंश शामिल होते हैं। जीर्ण एल्कोहल प्रयोग, थॉयरॉयड हारमोनों की कमी, बी 12 विटामिन की कमी, संक्रमण तथा चोट आदि के कारण संज्ञानात्मक असमर्थता कुछ मामलों में विकसित होती है।

मनोभ्रंश के लक्षणों में धीरे धीरे स्मृति लोप, नैत्यक कार्य करने की क्षमता में कमी, आत्म विस्मृति, सीखने में कठिनाई,भाषा कौशल का क्षय,निर्णय तथा आयोजना संबंधी विकृति तथा व्यक्तित्व में परिवर्तन शामिल होते हैं। प्रगति की दर प्रत्येक व्यक्ति में तथा अलग अलग कारणों की वजह से भिन्न भिन्न होती है। अल्जीमर रोग में लक्षणों के परिलक्षित होने से मृत्यु तक के लक्षणों में आठ वर्ष लगते हैं लेकिन यह तीन से बीस वर्ष तक हो सकते हैं।

सामान्य आयु संवर्धन प्रक्रिया के दौरान उत्पन्न होने वाली संज्ञानात्मक असमर्थता बहुत कम अशक्तता पैदा करती है तथा इसे रोग की प्रारम्भिक अवस्था में ही इसका मनोभ्रंश से विभेद किया जा सकता है। नीचे दिए बाक्स में विभेद संबंधी कुछ चिन्हों को प्रस्तुत किया गया है

गतिविधि मनोभ्रंश आयु-संबंधित स्मृति समस्याएं
भूलना समग्र अनुभव अनुभव का हिस्सा
बाद में याद आना यदा कदा अक्सर
नोट्स का प्रयोग कर सकता है धीरे धीरे असमर्थ आमतौर पर समर्थ
अपना ध्यान रख सकता है धीरे धीरे असमर्थ आमतौर पर समर्थ
लिखित और मौखिक अनुदेशों का पालन कर सकता है धीरे धीरे असमर्थ आमतौर पर समर्थ

तथापि,यह महत्वपूर्ण है कि संज्ञानात्मक असमर्थता के उपचार योग्य मामलों को अलग करने के लिए सावधानीपूर्वक मूल्यांकन किया जाना चाहिए जिनमें अवसाद, औषधि संबंधी प्रतिकूल प्रभाव, मेटाबॉलिक रोग तथा पौष्टिकता संबंधी कमियां शामिल हैं।

अल्जीमर तथा अन्य मनोभ्रंश रोगों का निदान करने के लिए कोई अकेला परीक्षण नहीं है। एक सुनिश्चित निदान के लिए मस्तिष्कीय ऊतकों में लक्षणात्मक विकृतिविज्ञान परिवर्तनों का परिलक्षण अपेक्षित होता है जिनकी शायद ही जांच की जाती है। तथापि, भली भांति परिभाषित दिशानिर्देशों के आधार पर मनोभ्रंश का संभावित निदान किया जा सकता है।

निदान के मूल्यांकन में सावधानी पूर्वक नैदानिक जांच, मानसिक स्थिति का मूल्यांकन, रक्त के नैत्यक जैवरसायन परीक्षण, मस्तिष्क की इमेज संबंधी जांच (सी टी स्कैन तथा एम आर आई स्कैन) तथा अनेक प्रकार के तंत्रिकामनोवैज्ञानिक परिक्षण शामिल हैं)