आयु के बढ़ने के साथ साथ अवसाद एक सामान्य समस्या है। इससे व्यक्ति को बहुत अधिक कष्ट उठाना पड़ता है तथा दिन प्रतिदिन के आम जीवन में इससे रुकावटें आती हैं। इससे न केवल रोगियों को कष्ट और परेशानियां होती हैं बल्कि उनके देखभालकर्ताओं को भी परेशानी होती है तथा इसमें से अधिकांश परेशानियां अनावश्यक रुप से उठानी पड़ती हैं। अवसाद के शिकार अधिकांश व्यक्तियों को उपचार की जानकारी नहीं है,हालांकि अधिकांश रोगियों की सहायता की जा सकती है। अवसाद संबंधी अनियमितताएं दिन प्रतिदिन में होने वाली क्षणिक दुःख भरी मनःस्थिति से भिन्न होती हैं तथा इनको ऐसे ही नहीं दूर नहीं किया जा सकता है। बिना उपचार के लक्षण हफ़्तों, महीनों अथवा वर्षों तक बने रहते हैं।

अवसाद संबंधी अनियमितताएं अन्य प्रकार की बीमारियों की तरह भिन्न भिन्न रुपों में प्रकट होती है। बड़े पैमाने पर अवसाद रोग के अंतर्गत अनेक लक्षण शामिल होते हैं जो कि व्यक्ति विशेष की कार्य करने, सोने, खाने-पीने तथा आनंदप्रद गतिविधियों का मजा लेने में हस्तक्षेप पैदा करते हैं। अवसाद संबंधी इस प्रकार की अक्षमता पैदा करने वाले प्रकरण जीवन में कई बार पैदा होते हैं। कम गम्भीर किस्म के अवसाद प्रकरण के अंतर्गत दीर्घकालिक जीर्ण लक्षण आते हैं जिनसे व्यक्ति- विशेष असमर्थ तो नहीं होता है लेकिन वह अपनी पूर्ण क्षमता के अनुसार कार्य नहीं कर पाता है अथवा वह अच्छा महसूस नहीं करता है। रुग्णता की स्थिति के दौरान भी अवसाद संबंधी प्रमुख प्रकरण घटित हो सकते हैं। तीसरे प्रकार का अवसाद मैनिएक-डिप्रैसिव साईकोसिस अर्थात द्वि-ध्रुवी अनियमितता होता है। इसमें अवसाद के दौरे तथा प्रफुल्लता शामिल है।

अवसाद के लक्षणों में निम्नलिखित शामिल है

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निरन्तर उदास, चिंतित अथवा “मूढ़ता” मन स्थिति
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पाप बोध, अनुपयोगिता तथा बेचारगी संबंधी भावनाएं
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अनिद्रा, सुबह जल्दी नींद खुल जाना, आवश्यकता से अधिक सोए रहना।
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उर्जा की कमी, थकान तथा “धीमापन”
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बेचैनी, चिड़चिड़ापन, ध्यान केन्द्रित करने में कठिनाई, भूलक्कड़पन तथा अनिर्णय की स्थिति में रहना।
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निराशा तथा दुःख वाद
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रुचियों तथा गतिविधियां जिनका पहले आनन्द लिया जाता है, जिसमें सेक्स भी शामिल है, उनके प्रति अरुचि की भावना
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क्षुब्धा अभाव तथा वज़न में कमी अथवा आवश्यकता से अधिक भोजन करना अथवा वज़न बढ़ना।
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मृत्यु अथवा आत्महत्या के विचार तथा आत्महत्या के प्रयास।
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निरन्तर बने रहने वाले शारीरिक लक्षण जो कि उपचार कराने पर ठीक नहीं होते हैं जैसे सिरदर्द,पाचनतंत्र संबंधी अनियमितताएं तथा जीर्ण दर्द।

जीवन चक्र के दौरा किसी गम्भीर हानि, जीर्ण रुग्णता, दुष्कर संबंधों, वित्तीय कठिनाई अथवा किसी प्रकार के नकारात्मक आकस्मिक परिवर्तन के कारण भी अचानक अवसाद का दौरा पड़ सकता है।

अकसर मनोवैज्ञानिक तथा परिवेश संबंधी घटक अवसादात्मक अनियमितता के घटित होने से जुड़े रहते हैं।

निदान और उपचार

अवसाद संबंधी रुग्णता की उपस्थिति तथा इसके श्रेणीकरण के निर्धारण में सम्पूर्ण शारीरिक तथा मनोवैज्ञानिक जांच,तथा मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन सबसे महत्वपूर्ण कदम हैं। कुछ विशिष्ट दवाओं तथा चिकित्सकीय रुग्णता के कारण भी अवसाद हो सकता है तथा इसके निर्धारण के लिए जांच, साक्षात्कार तथा प्रयोगशाला परीक्षण किए जाने चाहिए।

उपचार के अनेक विकल्प उपलब्ध हैं जो कि मूल्यांकन के परिणामों पर निर्भर करते हैं। अनेक अवसाद-रोधी औषधियां तथा मनश्चिकित्साएं उपलब्ध हैं जिनको अवसादात्मक अनियमितताओं के उपचार के लिए प्रयोग में लाया जा सकता है। अवसाद-रोधी औषधियों के अनेक समूह हैं जैसे ट्राईसाईक्लिक अवसाद-रोधी, मोनोअमाईन आक्सीडेस इन्हीबिटर्स (एमएओआईएस), लिथियम तथा चुनिंदा सेरोटोनिन रिसेप्टर इन्हीबिटर्स (एसएसआरआई)। कुछ लोग मनश्चिकित्सा से ठीक हो जाते हैं, जबकि अन्यों को अवसाद-रोधी औषधियां देनी पड़ती हैं, लेकिन सर्वश्रेष्ठ उपचार संभवत इन दोनों का सम्मिश्रण है।

इलेक्ट्रोकन्वल्सिव थेरेपी (ईसीटी) एक तीसरा विकल्प है जो ऐसे व्यक्तियों के लिए उपयोगी साबित होता है जिनका अवसाद गम्भीर श्रेणी तथा जीवन के लिए खतरा है, तथा जो अवसाद-रोधी औषधियां नहीं ले सकते हैं और वह औषधियों से भली प्रकार के ठीक नहीं हो रहे हैं।
रोगी अकसर लक्षणात्मक राहत से दवा लेनी बन्द कर देते हैं। जब तक की डाक्टर द्वारा आपको दवा बन्द करने की सलाह न दी जाए, तब तक दवा लेते रहना महत्वपूर्ण होता है। कुछ दवाओं को धीर धीरे करके रोका जाता है जबकि द्वि-ध्रुवी अनियमितता अथवा जीर्ण प्रमुख अवसाद में दवाएं जीवन भर लेनी पड़ती हैं।

अवसाद-रोधी औषधियों पर हमेशा निर्भरता नहीं रहती है, इसलिए इस संबंध में किसी को चिंता करने की आवश्यकता नहीं होती है। तथापि, जैसे कि किसी भी ऐसी दवा जिसे लम्बे समय तक लेने के लिए कहा जाता है, होता है, अवसाद-रोधी औषधियों की निगरानी भी सावधानीपूर्वक यह देखने के लिए की जानी चाहिए कि क्या रोगी को सही मात्रा में खुराक दी जा रही है। अनेक अवसाद-रोधी औषधियां दूसरी दवाओं के साथ परस्पर क्रिया करती हैं। इसलिए किसी भी नई दवा को शुरु करने से पहले ड़ाक्टरी सलाह अवश्य ली जानी चाहिए।

कुछ लोगों में अवसाद-रोधी औषधियों से हल्का तथा अस्थाई दुष्प्रभाव हो सकते हैं जो कि कष्टप्रद तो हो सकते हैं लेकिन यह गम्भीर नहीं होते हैं। ऐसे असामान्य अथवा गम्भीर दुष्प्रभावों की जानकारी डाक्टर को दी जानी चाहिए जो कि सामान्य कामकाज में हस्तक्षेप पहुंचाते हैं। ट्राईसाईक्लिक अवसाद-रोधी औषधियों के साथ सर्वाधिक सामान्य दुष्प्रभावों में निम्न शामिल हैः शुष्क मुंह, कब्ज, वस्ति संबंधी समस्याएं, सेक्स संबंधी समस्याएं, धुंधली दृष्टि, चक्कर आना तथा उनींदापन। नई अवसाद-रोधी औषधियों से भिन्न भिन्न प्रकार के दुष्प्रभाव होते हैं जैसेः सिरदर्द, मतली, अधीरता, अनिद्रा तथा क्षोभ।

अवसाद के लिए अनेक प्रकार के मनश्चिकित्साएं उपलब्ध हैं। प्रशिक्षित काँउसलर द्वारा मनश्चिकित्सा बहुत अधिक उपयोगी साबित होती है।
गम्भीर अवसादात्मक रुग्णता, विशेष रुप से जिसकी पुनरावृत्ति होती रहती है, उसके लिए उत्तम परिणामों के लिए मनश्चिकित्सा के साथ साथ दवा तथा/और ई सी टी की आवश्यकता होगी।

अवसाद ग्रस्त व्यक्ति की सहायता करना

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किसी अवसाद ग्रस्त व्यक्ति के लिए सबसे महत्वपूर्ण कार्य जो किसी द्वारा किया जा सकता है वह है कि उस व्यक्ति की उचित निदान तथा उपचार प्राप्त करने में सहायता की जाए तथा उसे भावनात्मक समर्थन प्रदान किया जाए।
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आत्महत्या के जोखिम के प्रति सजग रहें।
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पारिवारिक चिकित्सक
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मानसिक स्वास्थ्य सलाह मशविरा तथा हैल्पलाइन प्रदान करने वाले गैर सरकारी संगठन
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अवसाद ग्रस्त व्यक्ति पर बीमारी का बहाना बनाने अथवा सुस्त बने रहने का दोष न लगाएं अथवा उससे “इसमें से बाहर निकलने” की आशा न करें। अंततः उपचार के साथ अवसाद ग्रस्त अधिकांश व्यक्ति सुनिश्चित रुप से बेहतर हो जाते हैं। इस बात का ध्यान रखें, तथा अवसाद ग्रस्त व्यक्ति को बार बार यह आश्वासन देते रहें कि समय तथा सहायता से वह बेहतर महसूस करेगा/करेगी।
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अवसाद ग्रस्त व्यक्ति द्वारा मौज मस्ती गतिविधियों में हिस्सा लिया जाए,इसके लिए उन्हें प्रोत्साहित करें तथा उन्हें अपना सानिध्य प्रदान करें।
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सरकारी तथा निजी अस्पतालों में मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ तथा काँउसलर